गुरु अर्जुन देव के शहीदी दिवस पर गुरुद्वारा नागोरी गेट में श्री अखंड पाठ साहिब का भोग
गुरु जी के समाजहित, शांति व धैर्य के मार्ग पर चलने का किया आह्वान
एंटिक ट्रुथ | हिसार
प्रबन्धक कमेटी गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा नागोरी गेट द्वारा हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी शांति के पुंज पंचम पातशाह शहीदों के सरताज श्री गुरु अर्जुन देव महाराज का शहीदी दिवस स्थानीय नागोरी गेट स्थित गुरुद्वारा में बड़ी श्रद्धापूर्वक मनाया गया।
शहीदी दिवस पर रखे श्री अखण्ठ पाठ साहिब का भोग सभी साध संगतों के बीच विधिवत रूप से हुआ व हैड ग्रंथी इकबाल सिंह ने सरबत की भलाई के लिए अरदास की। इस अवसर पर बीबी अमनदीप कौर (पटना साहिब) स्थानीय बीबीओं द्वारा शब्द कीर्तन का गायन किया गया। इसके अलावा स्थानीय हजूरी रागी जत्था भाई कुलदीप सिंह ने उपस्थित गुरुघर से जुड़ी साध संगत को अपने मुखारविंद से श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज के इतिहास से अवगत करवाते हुए कहा कि गुरुजी का जन्म 15 अप्रैल 1563 को माता भानी जी की कोख से गोंदरवाल साहिब में हुआ। गुरु जी का लालन-पोषण गुरु अमर दास व बाबा बुड़दा सिंह जैसे महापुरुषों की देख-रेख में हुआ। गुरु जी बचपन से ही शांत स्वभाव व पूजा भक्ति करने वाले थे। समय ने करवट ली और गुरु महाराज ने धर्म प्रचार व लोक भलाई के कार्यों में तेजी ला दी और जो उस सयम के राजा महांगरी को पसंद नहीं आई और उन्हें शहीद करने का फैसला सुना दिया गया। जहांगीर ने अपने वजीर से गुरुजी को बुलवाया और कहा कि गुरु ग्रन्थ साहिब में उसका उल्लेख करे, गुरु जी ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्हें यातनाएं दी गई, जिसमें उन्हें गर्म रेत से नहलाया गया, गर्म तवे पर बैठाया गया, लेकिन वे शांति से सब कुछ सहन करते हुए अपने मुख से यही कहते रहे ‘तेरा भाणा मि_ा लागे’, इस प्रकार गुरु जी रावी नदी में शहादत को प्राप्त हुए।
गुरु जी को नमन करते हुए रागियों ने कहा कि हमें गुरु जी के समाजहित, शांति, धैर्य के मार्ग पर चलना चाहिए। इसके अलावा गुरुद्वारा के मुख्य ग्रन्थी ने सरबत की भलाई की अरदास की तथा गुरुघर से जुड़ी साध संगतों के बीच गुरु का अटूट लंगर बरताया गया। गुरुघर से जुड़े सेवादारों ने गुरुघर के बाहर ठंडे, मीठे पानी छबील लगाई व चने व तरबूज का वितरण किया गया।
इस अवसर पर कर्मसिंह प्रधान, कुलवंत सिंह सचिव, हरपाल सिंह गोल्डी, इंद्र सिंह चावला, गुलजार सिंह कहालो, अमरीक सिंह, जसवीर सिंह, भूपेंद्र कौर खालसा, सुखविंदर सिंह, परमिंदर सिंह, बाज सिंह के अलावा गुरुघर से जुड़े सेवादारों द्वारा पूरी व्यवस्था को संभाला।