सत्य की खोज का नाम है सत्संग : स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती
महामण्डलेश्वर स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती के जन्मोत्सव पर गांव ढाया में सत्संग का आयोजन
एंटिक ट्रुथ | हिसार
ये मानव जीवन इतने बड़े लाभ के लिए मिला है, जिस लाभ की प्राप्ति के बाद और कोई श्रेष्ठ लाभ की जरूरत नहीं होती। मानव जीवन का उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति कर लेना है और जितने भी कार्य है खाना-पीना, सोना आदि ये किसी भी योनि में चले जाएं वहां करने को मिल जाएंगे लेकिन कल्याण का अवसर, उद्धार का मौका, प्रभु की प्राप्ति का अवसर मनुष्य योनि में ही मिलता है। उक्त उद्गार स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती महाराज ने गांव ढाणा खुर्द में उनके जन्मोत्सव पर आयोजित सत्संग में व्यक्त किए। श्रद्धालुओं ने फूल मालाओं से उनका अभिनन्दन किया।
स्वामी परमात्मानन्द ने कहा कि हिन्दू धर्म में गाय जैसा पवित्र कोई दूसरा प्राणी नहीं जिसमें तैंतीस कोटि देवता निवास करते हैं लेकिन उसे भी परमात्म तत्व प्राप्त करने का अधिकार नहीं, ये अधिकार केवल मनुष्य को दिया गया है। ‘साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई न जेहि परलोक संवारा’ परमात्मा ने हमें मुक्ति के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया अबकी बार यदि चूक गये, भूल हुई तो फिर चौरासी में भटकना पड़ेगा। मानव जीवन दु:खो से छुटकारा पाने के लिए मिला है। सत्संग की महिमा बताते हुए परमात्मानन्द सरस्वती ने कहा कि सत्संग सत्य की खोज का नाम है। सत्संग से भगवान मिलते हैं व भक्त के वश में हो जाते हैं। परमात्मा को पकडऩे का एक ही उपाय है विशुद्ध प्रेम। रामायण में कहा है कि ‘रामहि केवल प्रेम प्यारा, जान लेऊ सोई जाननिहारा, हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रगट होई में जाना।’ हम परमात्मा को भूल गये परमात्मा हमें नहीं भूले इसलिए गुरू हमारी भूल को दूर कर देते हैं। ‘सतगुरू के दरबार में जाइये बारम्बार, भूली वस्तु लखाय दे गुरू बड़े दातार।’
स्वामी परमात्मानन्द सरस्वती ने कहा कि मनुष्य के दु:ख का मूल कारण परमात्मा का विस्मरण। सत्संग के बिना मानव का कल्याण नहीं हो सकता। सत्संग से ही मन को शांति मिलती है। उन्होंने कहा कि जन्मदिन मनाने का उद्देश्य सम्मान पाना नहीं अपितु अपना जो लक्ष्य होता है परमात्म प्राप्ति उसे पाना है। जब संतों की कृपा होती है परमात्मा का अनुग्रह होता है तब जीव को नामदान मिलता है और वे हमारे तार प्रभु से जोड़ देते हैं। इसलिए मनुष्य को हर समय परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए। अंत में स्वामी जी ने भजन सुनाकर भक्तों को मंत्र मुग्ध कर दिया। सत्संग में भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।