सत्य की खोज के लिए जीवन को समर्पित करने वाले व्यक्तित्व का नाम है भिक्षु : साध्वी श्री यशोधरा
तेरापंथ भवन मॉडल टाऊन हिसार में मनाया गया 265वां तेरापंथ स्थापना दिवस
एंटिक ट्रुथ | हिसार
जो सत्य की खोज के लिए जो अपने जीवन को समर्पित कर देता है वही व्यक्तितव आगे जाकर ‘आचार्य भिक्षु’ के रूप में प्रकट होता है। जो जहर पीकर अमृत मांगना चाहता है उस व्यक्ति का नाम होता है आचार्य भिक्षु। जीते जी जो श्मशान में जाकर अपने आपको साधना के लिए समर्पित कर देता है उस व्यक्तित्व का नाम है आचार्य भिक्षु। तूफानों में अटल हिमालय की तरह खड़े रहने वाले व्यक्तित्व का नाम है आचार्य भिक्षु। पद प्रतिष्ठा को ठुकरा कर सत्य के मार्ग पर निकलने वाले व्यक्तित्व का नाम है आचार्य भिक्षु। उक्त उद्गार साध्वी यशोधरा ने सत्य भवन में आयोजित 265वें तेरापंथ स्थापना दिवस पर व्यक्त किए।
अणुव्रत समिति के अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल ने यह जानकारी देेते हुए बताया कि साध्वी यशेधरा जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ के आधप्रवर्तक आचार्य भिक्षु श्रमण परंपरा के महान संवाहक थे। उनका जन्म वि. संवत 1983 आषाढ़ शुक्ल में ग्राम कंटालिया मारवाड़ में हुआ। बालक का नाम भीखण रखा गया। उनके पिता का नाम बल्लूशाह व माता का नाम दीपा बाई था वे ओसवाल जाति से थे। प्रारंभ से वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे। छोटी उम्र में दीक्षा हो गई। उनका जीवन वैराग्यपूर्ण था धर्मिकता उनके रग-रग में रमी हुई थी। भीखण जी दीक्षा के लिए तैयार हुए, मां ने दीक्षा की आज्ञा दी। उन्होंने आचार्य रघुनाथ के पास दीक्षा ग्रहण की। मुनि भीखण की दृष्टि मेधा सूक्ष्मग्राही थी। तत्व की गहराई, बुद्धि तेज थी। उन्होंने जैन शास्त्रों का अध्ययन किया जो साध्वाचार में विपरीत प्रतीत हो रही थी। आचार्य रघुनाथ के सामने उन्होंने बातें रखी, तथ्यों का जिक्र किया। समाधान संतोषजनक नहीं मिला। विचारों के भेद के कारण सत्य की खोज के लिए कुछ साधुओं सहित बगड़ी मारवाड़ में उनसे पृथक हो गए। उनकी धर्मक्रांति का विरोध हुआ। उस जमाने में रघुनाथ महाराज का प्रभाव तेज था। लोगों ने संत भीखण का विरोध किया। ठहरने के लिए स्थान नहीं दिया। वहां विहार किया। गांव के बाहर आए तब तेज आंधी आ गई, रास्ता रोक लिया। पड़ाव गांव के बाहर श्मशान में जैत सिंह की छतरियों में किया। आज भी वे छतरियां विद्यमान हैं। संघ बहिष्कार के साथ संत भीखण विरोधों के सामने झुके नहीं। वे सत्य के महान उपासक थे। सत्य के लिए मरने के लिए तेयार थे। साध्वीश्री ने बताया सत्य के प्रति उनका समर्पण भाव, आत्म बल, मनोबल, संकल्प बल, संयम बल, तपोबल, क्षमाबल, सिद्धांतबल, श्रद्धाकाल बाल, समताबमल, बुद्धिबल, वाकबल, अतिन्द्रिय बल आदि 13 बलों के अधिपति ने 1817 आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा को केलवा मेवाड़ में अपने सहयोगी संतों के साथ शास्त्र सम्मत दीक्षा ग्रहण की।
साध्वीश्री ने बताया कि तेरापंथ धर्म संघ अनुशासित, मर्यादित और व्यवस्थित धर्म संघ है। इसका गौरव है। आचार्य भिक्षु एक दार्शनिक, संत, नैसर्गिक कवि, मौलिक लेखक, प्रखर वक्ता, मधुर संगायक, महान समाज सुधारक थे। इस कार्यक्रम में साध्वी वृंद ने लघु नाटिका द्वारा आचार्य श्री भिक्षु को याद किया। विभिन्न वक्ताओं ने अपने संबोधन में आचार्य श्री भीखम को याद किया।
इस अवसर पर अणुव्रत समिति के अध्यक्ष राजेंद्र अग्रवाल, मंत्री दर्शन लाल शर्मा, महाबीर प्रसाद जैन, इंद्रेश पांडे, सुनील मित्तल, अनिल जैन, कमल, कुलदीप जैन, धर्मपाल, योगिता, सुमन, प्रमोद, विनोद, लीलुराम सहित समाज के व्यक्ति उपस्थित थे।