मनोरंजनलाइफस्टाइल
दुनियादारी समझ नहीं आई।
एंटिक ट्रुथ | हिसार
दुनियादारी समझ नहीं आई
दूध से गायब हुई मलाई
घी से लुप्त हुई चिकनाई।
प्रतिदिन बढ़ रही महंगाई
बहुत महंगी हो रही पढ़ाई।
हर पल बढ़ रही तन्हाई
रिश्तो में भी बढ़ रही खाई।
आपस की सब करते बुराई
शरीफ की कहीं नहीं होती सुनवाई।
बढ़ा खर्च, घट रही कमाई
प्रकृति भी करती रहती है खिंचाई।
बहुत महंगी मिलती दवाई
बेरोजगारी ने नींद उड़ाई।
खूब होती है टांग खिंचाई
गृहस्थी चलाने में भी होती कठिनाई।
भलाई करो, मिलती बुराई
दुनियादारी समझ नहीं आई।
पुष्कर दत्त