मेंटली फिट रहने के लिए ध्यान-योग में मन लगाएं या कोई अन्य भाषा सीखें
कई रिसर्च में ये भी पाया गया है कि नींद की कमी की वजह से दिमाग की परफॉर्मेंस पर भी असर पड़ता है।
मेंटली फिट रहने के लिए कोई भाषा सीखें या ध्यान-योग में मन लगाएं
जिस दिन नींद न पूरी हो उस दिन पूरा दिन आलस की चपेट में आ जाता है, लेकिन ये सिर्फ दिन भर उबासी लेने तक सीमित नहीं रहता। कई रिसर्च में ये भी पाया गया है कि नींद की कमी की वजह से दिमाग की परफॉर्मेंस पर भी असर पड़ता है।
ये इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि दुनिया की 40% आबादी पर्याप्त नींद नहीं ले रही है। वेक फिट के एक सर्वे में पाया गया कि 67% भारतीय महिलाएं काम के समय सुस्ती का एहसास करती हैं, वहीं 56% पुरुष भी इसमें शामिल हैं।
हाल ही में एक रिसर्च ने इसका तोड़ भी बताया है। यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ, इंग्लैंड में हुई एक रिसर्च में पता चला कि सिर्फ 20 मिनट एक्सरसाइज करके सुस्त दिमाग को जगाया जा सकता है।
किन तरीकों से दिमाग को रखा जा सकता है दुरुस्त
कहते हैं कुएं से जितना पानी निकाला जाए वो उतना ही भरा रहता है, वहीं कुएं से पानी निकालना बंद कर दिया जाए तो उसमें कचरा जमा होने लगता है। उसका पानी खराब होने लगता और अंत में वो सूख जाता है।
ऐसा ही कुछ हमारे दिमाग के साथ भी है। इससे जितनी मेहनत करवाई जाए ये उतना ही हेल्दी रहता है। इस बारे में स्कूल ऑफ सिस्टर्स नोट्रे डेम, अमेरिका की ईसाई नन्स पर हुई एक रिसर्च ने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चौंका कर रख दिया। ये रिसर्च नन स्टडी के नाम से दुनिया भर में मशहूर हुई।
इस रिसर्च के लिए 678 सिस्टर्स ने मरणोपरांत अपना शव दान किया था। ताकि वैज्ञानिक उम्र के साथ दिमाग पर होने वाले बदलावों को देख सकें।
जब उनके दिमाग का परीक्षण किया गया तो देखा गया कि 75-106 की उम्र की बुजुर्ग महिलाओं के दिमाग में अल्जाइमर या भूलने की बीमारी के टिशू तो मौजूद थे। लेकिन जीते जी इन महिलाओं में भूलने की बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखे, वो दिमागी रूप से स्वास्थ्य थीं।
ये देखकर वैज्ञानिक भी दुविधा में थे कि दिमाग में अल्जाइमर के टिशू होने के बावजूद महिलाओं को अल्जाइमर बीमारी क्यों नहीं हुई।
फिर सालों की रिसर्च के बाद वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि ये ईसाई सिस्टर्स जीते जी हमेशा कोई न कोई स्किल सीखने या दिमागी चैलेंज वाले काम करती रहती थीं। जिसकी वजह से उनके दिमाग के कुछ हिस्से के न्यूरॉन्स खराब होने के बावजूद, दूसरे हिस्सों में नए न्यूरॉन्स के कनेक्शन बनते रहे और उन्हें भूलने की बीमारी नहीं हुई।
मतलब दिमागी वर्जिश से और इसे नए चैलेंज देकर दिमाग को आजीवन दुरुस्त रखा जा सकता है, इसके लिए आप नीचे बताए काम कर सकते हैं।
दूसरी भाषा सीखने से भी दिमाग रहे दुरुस्त
मेडिकल जर्नल सेरेबेलम में छपी एक रिसर्च में पता चला कि बहुभाषी लोगों का दिमाग एक भाषा जानने वालों के मुकाबले ज्यादा दुरुस्त रहता है। उनमें डिमेंशिया और अल्जाइमर जैसी दिमागी बीमारियों का खतरा भी कम रहता है।
दरअसल दूसरी भाषा सीखना भी दिमाग के लिए एक चैलेंज की तरह है। इसमें वो नए न्यूरो कनेक्शन बनाता है। मतलब हम समझ सकते हैं कि दिमाग को भाषा सीखने, पजल हल करने या कोई नई स्किल सीखने में लगाया जाए तो ये आजीवन सेहतमंद रह सकता है।
इसके साथ रोजाना कसरत भी दिमाग के लिए फायदेमंद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया की लगभग 30 फीसदी आबादी पर्याप्त एक्सरसाइज नहीं करती। जिसकी वजह से असमय मौत का खतरा 20-30% ज्यादा हो सकता है।
तो देर किस बात की, कसरत करके शारीरिक और मानसिक सेहत का रखें ख्याल, जिएं सालों-साल।
कसरत के साथ खाने का भी रखें खास ख्याल
मसल्स बनाने के लिए तो प्रोटीन चाहिए लेकिन दिमाग के तो डोले होते नहीं तो फिर दिमागी सेहत के लिए क्या खाना सही है? चूंकि दिमाग का काम सिर्फ शरीर को चलाना नहीं है, ये हमारे मूड को भी डिसाइड करता है। इसलिए इसे शांत रखना और पर्याप्त जरूरी तत्व देना भी बहुत जरूरी है।